त्रिगुण असार निर्गुण हे सार |
सारासार विचार हरिपाठ ||१||
सगुण निर्गुण गुणांचे अगुण |
हरिविणे मन व्यर्थ जाय ||२||
अव्यक्त निराकार नाही ज्या आकार |
जेथोनी चराचर हरीसी भजे ||३||
ज्ञानदेवा ध्यानीं रामकृष्ण मनीं |
अनंत जन्मोनी पुण्य होय ||४||
सारासार विचार हरिपाठ ||१||
सगुण निर्गुण गुणांचे अगुण |
हरिविणे मन व्यर्थ जाय ||२||
अव्यक्त निराकार नाही ज्या आकार |
जेथोनी चराचर हरीसी भजे ||३||
ज्ञानदेवा ध्यानीं रामकृष्ण मनीं |
अनंत जन्मोनी पुण्य होय ||४||
No comments:
Post a Comment